
Corona virus – दुनिया भर में कोरोनावायरस से मरने वालों की संख्या बढ़कर डेढ़ लाख से भी ज़्यादा हो गई है. वहीं, अब तक कोरोना वायरस से करीब 25 लाख लोगों के संक्रमित होने की पुष्टि हुई है.
चीन के बाहर कोरोना वायरस के सबसे बड़े हॉट-स्पॉट अमरीका, स्पेन, इटली और फ्रांस बताए जा रहे हैं.
इस वायरस से मरने वालों में बुजुर्गों की संख्या ज़्यादा बताई जा रही है. लेकिन सवाल उठता है कि कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों में से कितने लोगों की मौत हो रही है.
इन सब की इनफार्मेशन हिंदी में केवल आप के लिए आज ही क्लिक करे
Fast Job Search / Daily Current Affairs / Education News / Exam Answer Keys / Exam Syllabus & Pattern / Exam Preparation Tips / Education And GK PDF Notes Free Download / Latest Private Sector Jobs / admit card / Results Live
शोधार्थियों की मानें तो कोरोनावायरस से संक्रमित प्रति एक हज़ार व्यक्तियों में से नौ व्यक्तियों की मौत होने की आशंका है.
इन कारकों में संक्रमित व्यक्ति की उम्र, लिंग, उसका सामान्य स्वास्थ्य और वह जिस देश में रहता है वहां का स्वास्थ्य तंत्र शामिल हैं.
मृत्यु दर निकालना कितना मुश्किल है?
कोरोनावायरस से संक्रमण के बाद कितने लोगों की मौत होती है, ये निकालना बहुत मुश्किल है.
ऐसे मामलों में अक्सर ऐसा होता है कि वायरस से संक्रमण के ज़्यादातर मामले स्वास्थ्य तंत्र की नज़रों से ओझल रहते हैं.
क्योंकि संक्रमित होने वाले लोगों में लक्षण काफ़ी सामान्य होते हैं जिस वजह से वे डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं.
Private Banking Jobs Click – icici-phone-banking-officer-recruitment-2021
दुनिया भर में इस समय कोरोनावायरस से जुड़ी मृत्यु दर अलग अलग बताई जा रही हैं. लेकिन इसके लिए वायरस की अलग-अलग किस्में ज़िम्मेदार नहीं हैं.
इंपीरियल कॉलेज के शोध के मुताबिक़, कोरोनावायरस की अलग-अलग मृत्यु दरें इसलिए सामने आ रही हैं क्योंकि अलग-अलग देशों के स्वास्थ्य तंत्रों की आसानी से नज़र में न आने वाले मामलों का पता लगाने में दक्षता अलग-अलग है.
ऐसे में जब संक्रमित होने वाले सभी व्यक्तियों की गिनती नहीं होती है तो इससे जो मृत्यु दर निकलकर आती है, वो असल मृत्यु दर से ज़्यादा होती है.
क्योंकि मृत्यु दर निकालने के लिए मरने वाले लोगों की कुल संख्या को संक्रमित होने वाले लोगों की कुल संख्या से विभाजित किया जाता है.
संक्रमण के चलते मौत
किसी व्यक्ति के संक्रमित होने के बाद उसके ठीक होने या संक्रमण के चलते मौत होने में समय लगता है. अगर आप सभी ऐसे मामलों को शामिल कर लें जिनमें अब तक लक्षण भी सामने नहीं आए हैं तो आप मृत्यु दर कम आंकेंगे क्योंकि आपके आकलन में मरने वालों की वो संख्या नहीं होगी जिनकी आख़िरकार इस वायरस के चलते मौत होगी.
वैज्ञानिक इन सभी सवालों से जुड़े सबूतों को एकत्रित करके मृत्यु दर निकालने के लिए एक कोशिश करते हैं. उदाहरण के लिए, वैज्ञानिक एक फ़्लाइट से अपने देश लौटने वाले लोगों पर नज़र रखकर उनमें से बीमार पड़ने वाले लोगों की संख्या के आधार पर एक अनुपात निकाल सकते हैं.
वैज्ञानिक एक छोटे समूह, जैसे कि फ़्लाइट से वापस आने वाले लोगों का समूह, पर ध्यान केंद्रित करके उसमें मौजूद वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों का अनुपात निकालेंगे. लेकिन इस तरह की कोशिशों से मिले सबूतों में मामूली बदलाव भी कोरोनावायरस से जुड़े बड़े परिदृश्य को बदलने में बड़ी भूमिका निभाते हैं.
अगर आप सिर्फ चीन के ख़ूबे प्रांत के आंकड़े निकालें, जहां मृत्यु दर शेष चीन के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा थी, तो आपको कोरोनावायरस की मृत्यु दर काफ़ी खराब दिखेगी. ऐसे में वैज्ञानिक मृत्यु दर के मामले में संभावित आंकड़ा देते हैं. लेकिन इससे भी पूरी बात सामने नहीं आती है क्योंकि यहां एक भी मुख्य मृत्यु दर नहीं है.
आम आदमी को कितना ख़तरा है?
कोरोना वायरस की वजह से बुजुर्गों, पहले से बीमार और पुरुषों के मरने का ख़तरा ज़्यादा है.
चीन के 44000 मामलों के पहले विश्लेषण में सामने आया है कि कोरोना वायरस से बुजुर्गों के मरने की दर मध्य-उम्रवर्ग के लोगों की तुलना में दस गुना ज़्यादा था.
30 साल से कम उम्र के लोगों के कोरोना वायरस से मरने की दर सबसे कम थी. ऐसे 4500 मामलों में सिर्फ 8 व्यक्तियों की मौत हुई.
वहीं, पुरुषों की मृत्यु दर महिलाओं की तुलना में ज़्यादा थी. ये सभी कारक एक दूसरे के साथ मिलकर काम करते हैं.
और हर भौगोलिक क्षेत्र में हर तरह के व्यक्ति को कितना जोख़िम है, इसे लेकर हमारे पास अभी भी पुख़्ता जानकारी नहीं है.
कितना जोख़िम है?
अगर चीन, यूरोप या अफ्रीका में रहने वाले किसी 80 वर्षीय वृद्ध को कोरोना वायरस से होने वाले जोख़िम का अंदाजा लगाया जाए तो चीन में रहने वाले 80 वर्षीय वृद्ध नागरिकों को कोरोना वायरस से ज़्यादा ख़तरा हो सकता है.
आपकी मेडिकल हालत कैसी होगी, ये इस बात पर भी निर्भर करता है कि आपको किस तरह का ट्रीटमेंट मिला है.
इसके साथ ही एक बात ये भी अहम है कि कोई व्यक्ति ये बीमारी फैलने के किस स्तर पर संक्रमित हुआ है.
अगर महामारी फैल जाती है तो स्वास्थ्य तंत्र लगातार आते संक्रमण के मामलों से घिर जाता है.
क्योंकि किसी भी नियत समय पर एक नियत स्थान पर एक सीमित संख्या में वेंटिलेटर और आईसीयू उपलब्ध हो सकते हैं.
क्या ये फ़्लू से ज़्यादा ख़तरनाक है?
हम कोरोना वायरस मृत्यु दर की तुलना फ़्लू से नहीं कर सकते हैं क्योंकि हल्के बुखार के लक्षण होने पर लोग डॉक्टर के पास नहीं जाते हैं.
ऐसे में हम ये नहीं जानते हैं कि हर साल फ़्लू किसी अन्य नए वायरस के कितने मामले सामने आते हैं.
लेकिन फ़्लू की वजह से आज भी सर्दियों में ब्रिटेन में लोगों की मौत होती है.
लेकिन जैसे-जैसे आंकड़े सामने आ रहे हैं, वैज्ञानिक ये स्पष्ट करने में सक्षम हो पाएंगे कि ब्रिटेन में कोरोना वायरस फैलने की स्थिति में सबसे ज़्यादा जोख़िम में किस तरह के लोग होंगे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से एक सामान्य राय ये है कि आप हाथ धुलकर, खांसते और छींकते हुए लोगों से दूर रहकर और अपनी नाक, आँख और मुंह को छूने से बचकर आप सांस लेने से जुड़े सभी वायरसों से स्वयं को बचा सकते हैं.